Ganesh ji ki vrat khata :- गणेश जी और बुढ़िया की कहानी
प्राचीन समय की बात है। एक गांव में एक ब्राह्मणी अपने बेटे व बहू के साथ रहती थी। ब्राह्मणी के पति गांव में बने गणेश मंदिर में पुजारी थे। उनके मरने के बाद ब्राह्मणी वहां सेवा करने लगी व मंदिर की साफ सफाई व पूजा पाठ का सारा इंतजाम करती थी। बगीचे से फूल तोड़कर लाती और मंदिर में बैठकर सुंदर फूलों की माला बनाकर पहनाती थी और गणेश भगवान की कथा कहानी सुनती और कहती थी। सुबह जब मंदिर के पुजारी आते उससे पहले सारा काम पूरा कर देती थी। पुजारी जी मंदिर में पूजा करने के बाद जो फल, मिठाई और पैसे मंदिर में चढ़ावे के रूप में आते उसमें से कुछ उस ब्राह्मणी को दे देते थे, जिससे उसकी गुजर बसर हो जाता था । ब्राह्मणी का लड़का किसान था और वो बहुत ही सीधा साधा था, परंतु उसकी पत्नी राधा बहुत तेज और चालाक थी। वह अपनी सास को पसंद नहीं करती थी। ब्राह्मणी दोपहर को घर आती तब राधा मंदिर से लाये हुए मिठाई और फलों को छुपाकर अपने कमरे में रखा आती थी और सूखी रोटी व पानी मिली हुई सब्जी ब्राह्मणी के सामने लाकर रख देती थी । जब वह कहती कि यह कैसा खाना बनाया है तो वह लडने को तैयार हो जाती और कहती जैसा हम खा रहे हैं वैसा ही आपके लिए बनाया है। पर असलियत में उसने कुम्हार से खाने की हांडी ऐसी बनवाई थी जिसमें दो भाग थे। वह एक तरफ अपनी सास के लिए सब्जी बनाती और दूसरी तरफ अपने लिए और अपने पति के लिए बनाती थी । जब परोसती तो सास को पानी मिले। सब्जी देती। ब्राह्मणी थोड़ा खाना खा कर संतोष कर लेती और दिन रात गणेश भगवान से प्रार्थना करती हे प्रभु!
मेरे परिवार पर कृपा बनाए रखना। ब्राह्मणी पूरा दिन गणेश भगवान के भजन करने में निकाल देती। गणेश भगवान की कृपा से किसन का कारोबार अच्छा चल रहा था। वह शाम को काफी पैसे लेकर आता था परंतु राधा किसी को भनक नहीं लगने देती थी । वह हमेशा गरीबी का रोना रोती रहती थी । इसी कारण उसकी सास परेशान होकर गणेश भगवान से प्रार्थना करती। ऐसे ही समय बीत रहा था। एक दिन उसके घर के द्वार पर एक बूढ़े ब्राह्मण आया और भिक्षा मांगने लगा । राधा ने उसे कहा कि वह अपने खाने के लिए नहीं है, तुम्हें जहा से आये हो वही पर लोट जाओ । तब ब्राह्मणी ने मंदिर से लाये हुए प्रसाद उस ब्राह्मण को दे देती है । यह देखकर ब्राह्मण बहुत खुश होता है । जब वह वह से जा रहा था तो तभी किसन वहां आ गया। उसने ब्राह्मण का आदर सत्कार किया और उनसे आग्रह किया कि आप हमारे यहां आज भोजन करें। ब्राह्मण ने मना किया पर वह नहीं माना। जिद करने पर वह भोजन करने को तैयार हो गए पर उनोने कहा, मैं भोजन तभी करूंगा जब तुम दोनों भी मेरे साथ भोजन करोगे। किशन ने खुश होकर कहा यह तो आपकी कृपा है जो हमारे साथ भोजन करना चाहते हो आप उसने राधा को भोजन लाने के लिए कहा। राधा को बहुत बुरा लग रहा था पर वह कुछ भी नहीं कर पा रही थी भोजन परोसा गया। तब किशन ने कहा हे गुरु जी, पहले आप भोग लगाइए तब हम भोजन शुरू करेंगे। ब्राह्मण ने थाली देखी तो उनकी और ब्राह्मणी की थाली में पानी भरी सब्जी देखा। वह
किसन की थाली में घी से भरी सब्जी देखी। उन्होंने कहा, मैं वहां भोजन नहीं कर सकता जहां अतिथियों का सत्कार न होता हो। यह कह कर वह उठ खड़े हुए। किसान ने उनके पैर पकड़ लिए और पूछा मुझसे क्या गलती हो गयी जो आप भोजन ग्रहण किए बिना ही जा रहे हैं? बूढ़े ब्राह्मण ने कहा गणेश भगवान का तुम पर विशेष कृपा है, पर तुम खुद घी में बनी सब्जी खा रही हो और रोज अपनी मां को पानी मिलि सब्जी देती हो, जिससे वह आधा पेट खाना खाकर रह जाती है। किसन ने कहा पर हमारे यहां तो एक ही हांडी में खाना पकता है। किसन ने ध्यान से देखा तो तीनों थालियों में अलग अलग तरह के भोजन थे। उसने रसोई में जाकर देखा तो उस हांडी में अलग अलग सब्जी थी। उसे राधा पर बहुत क्रोध आया और राधा को घर से निकल जाने के लिए कहा। राधा बूढ़े ब्राह्मण के पैरों में गिर गयी और माफी मांगने लगी। तभी वह बूढ़े ब्राह्मण भेष बदलकर गणेश भगवान के रूप में प्रकट हुए और उन्होंने कहा, तुम्हारे घर में जो भी धन दौलत है वह तुम्हारे सास के पुण्य के कारण है। तुम्हारे कर्मों के कारण तो तुम्हें भोजन भी नहीं मिल सकता। किसन ने गणेश भगवान के पैर पकड़ लिए और रोने लगा। उसने कहा प्रभो!
मुझे माफ कर दीजिए। इन सबके बारे में मुझे पता नहीं था। बुढ़िया भी गणेश भगवान के पैरों में गिर गई और अपनी बहू बेटी के लिए माफी मांगने लगी। गणेश भगवान ने कहा, जिस घर में बुजुर्गों का सम्मान नहीं होता है, वह कपट होता है। वहां मेरा वास नहीं होता है। इसलिए तुम आज से अपनी मां का खूब सेवा करना और इन्हीं के हृदय में गणेश भगवान का वास समझकर यदि तुमने ऐसा किया तो एक वर्ष के बाद तुम्हारे घर में चार गुना धनवर्षा होगी । यह कहकर गणेश भगवान अंतर्ध्यान हो गए। हे गणेश जी महाराज! अपने सभी भक्तों पर अपनी कृपा बनाए रखना। कहानी अधूरी हो तो पूरी करना पूरी हो तो मान रखना। प्रेम से बोलो
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