DHARTI MATA KI KAHANI KATHA: -धरती माता की कहानी | धरती माता की कथा |
एक ब्राह्मणी थी | वह बहुत धार्मिक महिला थी | सभी ग्रामवासी उसका बहुत सम्मान करते थे | कोई भी उसकी शरण में आता वह सबकी मदद किया करती थी | मन ही मन भगवान का स्मरण किया करती थी | भगवान की सेवा पूजा व जरूरतमन्दो की सेवा ही उसका परम धर्म था | एक दिन ब्राह्मणी मरकर भगवान के घर गई |
धरती माता की कहानी
वहाँ जाकर बोली मुझे बैकुंठ का रास्ता बता दो स्वर्ग से एक दूत आया और बोला , ब्राह्मणी आपको क्या चाहिए | वो बोली मुझे बैकुंठ का रास्ता बता दो | आगे – आगे दूत और पीछे ब्राह्मणी मन्दिर तक गये , ब्राह्मणी बहुत धार्मिक महिला थी उसने बहुत दान – पुण्य कर रखा था उसे विश्वास था की उसके लिए बैकुंठ का रास्ता अवश्य खुल जायेगा |
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ब्राह्मणी ने वहाँ जाकर देखा वहाँ बड़ा सा मन्दिर , सोने का सिंहासन , हीरे मोती से जडित छतरी थी | चित्रगुप्त जी न्याय सभा में बठे साक्षात् इन्द्र के समान सौभा पा रहे थे और न्याय नीति से अपना राज्य सम्भाल रहे थे | यमराजजी सबको कर्मानुसार दंड दे रहे थे | ब्राह्मणी ने जाकर प्रणाम किया और बोली मुझे वैकुण्ठ जाना हैं | चित्रगुप्त ने लेखा सुनाया और कहां की ब्राह्मणी तुमने सब धर्म किये परंतु धरती माता की कहानी नहीं सुनी इसलिए तुम्हारे सिर पर धरती माता का कर्ज हैं | वैकुण्ठ में कैसे जायेगी ब्राह्मणी बोली –धरती माता की कहानी के क्या नियम हैं ‘ चित्रगुप्त जी जी बोले कोई एक साल , कोई छ: महीने , कोई सात दिन ही सुने पर धरती माता की कहानी अवश्य सुने फिर उसका उद्यापन कर दे |
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Dharti Mata ki Katha udyapan kaise karen - धरती माता की कथा का उद्यापन कैसे करें
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