Dharm Raj ji ki kahani :- धर्मराज जी और कर्मो के फल की कहानी/Dharam Raj ji aur karma ke phal ki kahani
नमस्कार दोस्तों आज मैं आपको धर्मराज जी और कर्मों। के खेल की कहानी सुनाने जा रही हैं। प्रेम से बोली धर्मराज की जय एक बार एक राजा था वह बहुत बड़ा धर्मात्मा, न्यायकारी और परमेश्वर का भक्त था। उसने ठाकुर जी का मंदिर बनवाया और एक ब्राह्मण को उसका पुजारी नियुक्त किया। वह ब्राह्मण बडा ।सदाचारी। धर्मात्मा। और संतोषी था। वह राजा से कभी कोई याचना नहीं करता था। राजा भी उसके। स्वभाव पर बड़ा ही प्रसन्न रहते था उसे राजा के मंदिर में पूजा करते हुए बीस वर्ष गुजर गए। उसने कभी भी राजा से किसी भी प्रकार का कोई प्रश्न नहीं किया। राजा के एक लड़का पैदा हुआ। राजा ने उसे। पढ़ा लिखाकर। विद्वान बनाया और बड़ा होने पर उसकी शादी एक सुंदर राजकुमारी के साथ कर दिया। शादी करके जिस दिन राजकन्या को अपने राजमहल में लाया गया उसी रात्रि में राजकुमारी को नींद नहीं आ रही थी। वह इधर उधर घूमने लगी जब अपने पति के पलंग के पास आई तो क्या देखती है कि हीरे जवाहरात जडित मुठिया वाली एक तलवार पड़ी है जब उस राजकन्या ने देखने के लिए वह तलवार।म्यान से बाहर निकाली तब तेज धार वाली और बिजली के समान प्रकाश वाली तलवार को देखकर वह डर। गई और डर के मारे उसके हाथ से तलवार गिर पड़ी और।
राजकुमार के गर्दन पर जा लगी। राजकुमार का सिर कट गया और वह मर गया राजकन्या पति के मरने का बहुत शोक करने लगी। उसने भगवान से। प्रार्थना की कि हे प्रभो! मुझसे अनजाने में यह पाप कैसे हो गया पति की मृत्यु मेरे ही हाथों हो गई।आप तो जानते ही हो , परंतु सभा में मैं सत्य न बोल पाएंगी क्योंकि इससे मेरे माता पिता और सास ससुर को कलंक लगेगा तथा इस बात पर कोई विश्वास ही नहीं करेगा प्रातः काल को वो पुजारी कुएं पर स्नान करने आया। तब राजकन्या ने उसको देखकर विलाप करना शुरू कर दिया। वह इस पर कहने लगी मेरे पति को कोई मार गया है। लोग इकट्ठे हो गए और राजा साहब आकर पूछने लगे किसने मारा? वह कहने लगी मैं जानती तो नहीं कि कौन है परंतु उसे ठाकुर जी के मंदिर में जाते हुए देखा था । राजा समेत सभी लोग ठाकुर जी के मंदिर में आए तो ब्राह्मण पूजा करते हुए देखा गया उन्होंने उसे पकड लिया और पूछा तुमने राजकुमार को क्यों मारा ब्राह्मण ने कहा मैंने तो उनका राजमहल में भी कभी नहीं देखा । इसमें ईश्वर साक्षी है। बिना देखे किसी पर अपराध का दोष लगाना ठीक नहीं है। ब्राह्मण की तो किसी ने एक बात तक नहीं सुनी कोई कुछ कहता तो कोई कुछ बोलता । राजा के दिल भी बार बार कहता कि यह ब्राह्मण निर्दोष है परंतु सभी के कहने पर राजा ने ब्राह्मण
से कहा मैं तुम्हें प्राणदंड तो नहीं दे सकता, लेकिन जिस हाथ से तुमने मेरे पुत्र को तलवार से मारा है, तेरा वह हाथ काटने का आदेश देता हु ऐसा कहकर राजा ने।
उसका हाथ कटवा दिया। इस पर ब्राह्मण बडा दुखी हुआ और राजा को। अधर्मी जान उस देश को छोड़कर चला गया। वहां वह खोज करने लगा कि कोई विद्वान ज्योतिषी मिले तो बिना किसी अपराध हाथ कटने का कारण उससे पूछू । किसी ने उसे बताया कि काशी में एक विद्वान ज्योतिषी रहते हैं। तब वह
उनके घर पर पहुंचा। ज्योतिषी कहीं बाहर गया हुवा था । उसने उनकी धर्मपत्नी से पूछा माता जी आपके पति ज्योतिषी जी महाराज कब आएंगे तब उस स्त्री ने अपने मुख से अयोग्ये अशब्द वचन कहे जिनको सुनकर वह ब्राह्मण हैरान हो गया और मन ही मन कहने लगा कि मैं तो अपना हाथ काटने का
कारण। पूछने आया था परंतु अब इनका ही हाल पहले पूछूँगा इतने में ज्योतिषी जी पहुंचे घर में प्रवेश करते ही ज्योतिषी की पत्नी ने अनेक।
दुर्वचन कहकर उनका तिरस्कार किया। परंतु ज्योतिषी जी चुप रहे और अपनी स्त्री को कुछ भी नहीं कहा। फिर वो अपनी गद्दी पर आकर बैठ गए। ब्राह्मण को देख ज्योतिषी जी ने उनसे कहा का यह ब्राह्मण देवता कैसे आना हुआ आया तो था अपने। बारे में पूछने के लिए परंतु पहले आप अपना हाल बता इए।
कि आपकी पत्नी अपनी जुबान से आपका इतना तिरस्कार क्यों करती है जो किसी से भी नहीं सहा जाता और आप सह लेते हो इसका क्या कारण है?
ज्योतिषी ने बोला। यह मेरी स्त्री नहीं, मेरा कर्म है दुनिया में जिसको भी देखते हो। अर्थात भाई, पुत्र, पुत्री , पिता,माता गुरु, समधी जो कुछ भी है।
वो सब अपने कर्म ही है यह स्त्री नहीं मेरा किया हुआ कर्म ही है। और यह भोगे बिना कटेगा नहीं । अपना किया हुआ जो कुछ भी शुभ अशुभ कर्म है वह अवश्य ही भोगना पड़ता है बिना भोगे तो सैकड़ों करोड़ों योनियों में गुजरने पर भी कर्म नहीं टाल सकता। इसलिए मैं अपने कर्म खुशी से भोग रहा हूं और
अपने स्त्री की बुराई भी नहीं कहता , ताकि आगे इस कर्मो का फल भोगना नहीं पडे महाराज आपने क्या कर्म किया था? ब्राह्मण ने पूछा। ज्योतिषी जी बोले सुनिए, पूर्वजन्म। मैं कव्वा था। और मेरी स्त्री गडवी थी। इसकी पीठ पर फोड़ा था। फोड़ा की पीड़ा से यह बड़ी दुखी रहती थी और कमजोर भी हो गई
थी। मेरा स्वभाव दुष्ट था इसलिए मैं इसके फोड़े में चोंच मारकर इसको ज्यादा दुखी करता था। जब दर्द के कारण यह। कूदती थी तो इसको दुखी देख कर मैं खुश होता था। मेरे डर के कारण यह सहसा बाहर नहीं निकलती थी, किंतु मैं इसको ढूंढता फिरता रहता था यह जहां मिलती वहीं इसको दुखी करता था।
आखिर मेरे द्वारा बहुत सताए जाने पर त्रस्त होकर यह गांव से दस बीस किलोमीटर दूर घने जंगल में चली गई वहां गंगा जी के किनारे सघन न में हरा भरा घास खाकर और मेरी चोटों से बचकर सुखपूर्वक रहने लगी। लेकिन मैं इसके बिना नहीं रह सकता था इसको ढूंढते ढूंढते मैं उसी बल में जा पहुंचा और
इसे देखते ही मैं इसकी पीठ पर जोर जोर से चोंच मारने लगा तो मेरी चोच इसकी हड्डी में गड़ गई। इस पर इसने अनेक प्रयास किए फिर भी चोंच न छूटी। मैंने भी चोंच निकालने का बढिय़ा प्रयत्न किया मगर निकली पाने के भय से ही यह दुष्ट मुझे छोड़ेगा, ऐसा सोचकर क्या गंगा जी में प्रवेश कर गई परंतु वहां
भी मैं अपनी चोंच निकाल पाया आखिर में यह बड़े प्रवाह में प्रवेश कर गई। गंगा जी का प्रवाह तेज होने के कारण हम दोनों बह गए और बीच में ही मर गए। गंगा जी की कृपा से मैं बड़ा ज्योति बना। अब वही मेरी स्त्री बनी जो मेरी मरण उपरांत अपने मुख से गाली निकालकर मुझे दुख देगी और मैं भी अपने।
पूर्व कर्मों का फल समझकर सहन करता रहूंगा इसका दोष नहीं मानूंगा क्योंकि या किए गए कर्मों का ही फल है, इसलिए मैं सही हु । अब आप अपना प्रश्न पूछो। ब्राह्मण ने अपना सब समाचार को सुनाया और पूछा अधर्मी पापी राजा ने मुझ अपराध का हाथ क्यों कटवाया ज्योतिषी ने कहा राजा ने आपका हाथ
नहीं कटवाया आपके कर्म ने ही आपका हाथ कटवाया है। ब्राह्मण ने पूछा किस प्रकार ज्योतिषी ने कहा पूर्वजन्म में आप एक तपस्वी थे और राजकन्या गौ थी तथा राजकुमार
कसाई था। कोई कसाई जब गौ को मारने लगा तब गौ बेचारी जान बचाकर आपके सामने से जंगल में भागी। पीछे से कसाई आया और आपसे पूछा कि इधर कोई गाय तो नहीं आई है आपने प्रण कर रखा था कि झूठ नहीं बोलूंगा। अतः जिस तरफ गौ गई थी उस तरफ आपने हाथ से इशारा कर दिया। तब उस
कसाई में जाकर गौ को मार डाला गंगा के किनारे वह उसकी चमड़ी निकाल रहा था कि इतने में ही उस जंगल से शेर आया और गौ एवं कसाई दोनों को खा लिया गंगा जी के किनारे उन दोनों की हड्डियां बच गई गंगा जी के प्रताप से कसाई को राजकुमार और गौ को राजकन्या का जन्म मिला और पूर्वजन्म
के किए हुए कर्म से एक रात्रि के लिए उन दोनों को इकट्ठा किया गया क्योंकि कसाई ने गौ को हंसिए से मारा था। इसी कारण राजकन्या की अनायास ही तलवार गिरने से राजकुमार का सिर कट गया और वह मर गया इस तरह आपको फल दे कर कर्म निवृत हो गया। आपने जिस हाथ का इशारा करके कर्म
किया था उस पाप कर्म ने आपका हाथ कटवा दिया। इसमें आपका ही दोष है। किसी अन्य का नहीं ऐसा निश्चय कर सुखपूर्वक रहिए धर्मराज जी, हमारे द्वारा।हुए पापों को क्षमा करना। प्रेम से बोले धर्मराज की जय हो।
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