Dharamraj ji ki kahani :- धर्मराज जी कहानी
बहुत पहले एक ब्राह्मण अपनी पत्नी और एक बेटी के साथ रहता था। बेटी का नाम गौरी था। ब्राह्मणी धर्मराज की भक्त थी। उसने धर्मराज की कथा कहानी कहने का नियम लिया था। वह रोज धर्मराज की कथा सुनती थी। गौरी ने माँ को ऐसा करते देखा तो उसके मन में भी धर्मराज के प्रति श्रद्धा उत्पन्न हुई। उसने भी माँ से कहा मैं भी धर्मराज की कथा कहने का नियम लूँगी। बेटी की श्रद्धा देखकर माँ को खुशी तो हुई पर उसने कहा बेटी, जब तुम बड़ी हो जाओगी तो तुम्हारा विवाह होगा। तुम्हें ससुराल जाना होगा। हो सकता है तुम अपने इस नियम का पालन वहाँ ठीक से नहीं कर सको। तब तुम्हें दोष लगेगा। पर गौरी अपनी जिद पर अड़ी रही। उसकी हठ के आगे ब्राह्मणी को झुकना पड़ा। उसने बेटी को धर्मराज की कथा कहने सुनने का नियम दिलवा दिया। दिन बीतने लगी। गौरी बड़ी हुई। योग्य वर देखकर माता पिता ने उसका विवाह कर दिया। वह विदा होकर ससुराल आ गई। ससुराल में सास, जिठानी, देवरानी सब थी। गौरी ने अपनी ससुराल में कुछ महीने तो ठीक से निकाल दिए। धर्मराज की कथा कहानी नियम से करती रही, पर एक दिन देवरानी और जेठानी से गौरी की कहासुनी हो गई।
वह लोग उससे नाराज हो गए और उन्होंने धर्मराज की कथा सुनने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा, तुम तो सारा दिन कथा कहानी कहती रहती हो। घर के काम में भी हाथ नहीं बटाती। हम लोगों को घर का सारा काम करना पड़ता है। अगले दिन गौरी नहा धोकर आई। वह सबसे कहती रही मेरी कहानी सुन लो। पर सबने उसकी कहानी सुनने से इनकार कर दिया। उल्टे उस पर ही इल्जाम लगाने लगी कि घर के काम से बचने के लिए वह बहाना बना रही है। उन्होंने उसे घर का काम करने की हिदायत दी। लाचार गौरी घर के काम में हाथ बंटाने लगी। इस कारण उसका कथा कहने का नियम पूरा नहीं हो सका। इसी दुख में उसने भोजन भी नहीं किया। इसी तरह तीन दिन बीत गए। भूखी प्यासी तड़पती रही, पर किसी को उससे सहानुभूति नहीं हुई। एक रात जब सो रही थी तो उसके सपने में धर्मराज आए। उन्होंने गौरी से पूछा, तुमने अपने नियम का पालन क्यों नहीं किया?
गौरी ने उन्हें सारी बातें बता दी। धर्मराज ने उसे पूजाघर में जाने को कहा। गौरी ने वैसा ही किया। पूजाघर ज्यादातर बंद ही रहता था, क्योंकि ससुराल में किसी को पूजा पाठ में इतनी श्रद्धा नहीं थी। गौरी ने जब पूजाघर खोला तो वह हैरान हो गई। वह पीपल, पथवारी, मां गंगा, मां यमुना, तुलसी माता और स्वर्ग की सभी देवी देवता वहां विराजमान थे। गौरी की प्रसन्नता का ठिकाना नहीं था। उसने सारे देवी देवताओं की पूजा की। फिर धर्मराज की नित्य नियम की कथा कही। उसकी खुशी खुशी पूजाघर का दरवाजा बंद किया और चौकी में आई। उसने अपनी थाली में भोजन परोसा और खाने लगी। सभी देवरानी जेठानी खटपट की आवाज सुनकर रसोई घर में आई तो गौरी को भोजन करते देखा। वह व्यंग्य से बोली तुम्हारे नियम का क्या हुआ? भूख सहन नहीं हुई, जो कथा कहे बिना खाने बैठ गई। अब तुम्हारा प्रण कहां गया? गौरी ने सरल मन से जवाब दिया, मैंने अपनी कथा का नियम पूरा कर लिया है। तत्पश्चात ही भोजन कर रही हूं। उन लोगों ने कहा हमने तो तुम्हारी कथा नहीं सुनी। फिर तुमने नियम कैसे पूरा किया?
गौरी बोली सारे देवी देवता पूजाघर में विराजमान हैं। मैंने उनकी पूजा करके उन्हीं को कथा कहानी सुना दी। सास, देवरानी, जेठानी को उसकी बात पर भरोसा न हुआ। उन्होंने कहा मुझे भी तो दिखाओ कहां है तुम्हारे देवी देवता। गौरी सबको लेकर पूजा घर में आई। जब उसने द्वार खोला तो वहां कोई नहीं था। सब देवी देवता गायब हो गए थे। तब गौरी ने हाथ जोड़कर आंखें बंद करके धर्मराज का ध्यान किया और कहा, यदि मेरी श्रद्धा सच्ची है तो आप सब दर्शन दीजिए। मेरे घरवाले भी आप लोगों के दर्शन करना चाहते हैं। उसके इतना कहते ही सभी देवी देवता फिर से प्रकट हो गए। सास, देवरानी, जेठानी आश्चर्य से चकित हो गई। उन्होंने देवताओं के दर्शन किए और हाथ जोड़कर माफी मांगने लगी। सबको धर्मराज का चमत्कार दिखाई पड़ गया था। अब सब लोग धर्मराज की कथा कहने लगे। इसके फलस्वरूप उनका घर सुख समृद्धि से भर गया। मृत्यु के पश्चात सब लोग स्वर्ग लोक गए। दोस्तों आपको मेरी कहानी कैसी लगी? कहानी अच्छी लगी हो तो इसे लाइक और शेयर ज़रूर करें। धन्यवाद।
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